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Kartik Maas: Bhishma Panchak Mahavrat

Kartik Maas: Bhishma Panchak Mahavrat

कार्तिक मास के अंतिम 5 दिन भीष्म पंचक या विष्णु पंचक के नाम से जाने जाते हैं। यह 5 दिवसीय व्रत उत्थान एकादशी तिथि से आरम्भ होता है और कार्तिक पूर्णिमा पर समाप्त होता है। हरि भक्ति विलास के अनुसार यदि कोई भक्त यह व्रत करने में सक्षम है, तो उसे भगवान श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिए भीष्म-पंचक पर कुछ विशेष खाद्य पदार्थों से उपवास का पालन करना चाहिए। पद्म पुराण में कहा गया है कि जो भी भक्त इस ५ दिवसीय व्रत का पालन करते हैं, उन्हें इस तपस्या से आध्यात्मिक उन्नति एवं भगवान श्रीकृष्ण की शुद्ध भक्ति प्राप्त होती है।

कार्तिक मास के अंतिम पांच दिनों में यह व्रत पहले ऋषि वशिष्ठ, भृगु, गर्ग आदि द्वारा सत्ययुग में किया जाता था। अंबरीष महाराज ने यह व्रत किया और त्रेतायुग में अपने सभी राजसी सुखों का त्याग कर दिया।

भीष्म पंचक उपवास का पालन करने से व्यक्ति को चारों चतुर्मास उपवास का लाभ मिलता है यदि कोई उसका पालन करने में असमर्थ रहा हो। 

भीष्म पंचक का व्रत क्यों रखा जाता है?

भीष्म-पंचक मां गंगा एवं राजा शांतनु के पुत्र भीष्मदेव को समर्पित है। वह कुरु वंश में महान राजा भरत के वंशज पांडवों के ज्येष्ठ पितामह हैं। महाभारत एवं श्रीमद-भागवतम के अनुसार भीष्मदेव ने कुरु वंश का सिंघासन त्याग कर आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा की जिसका उन्होंने जीवनपर्यन्त पालन किया। गौड़ीय वैष्णव के अनुसार, भीष्मदेव कृष्णभावनामृत विज्ञान में बारह महाजन अधिकारियों में से एक के रूप में जाने जाते हैं। अपनी युवावस्था में उन्हें यह वरदान मिला था कि उनकी मृत्यु उनकी इच्छानुसार ही होगी।

महाभारत का युद्ध समाप्ति होने के जिस समय गंगा पुत्र भीष्म सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में बाणों की शैया पर शयन कर रहे थे तब भगवान श्रीकृष्ण पांडवों के साथ उनके पास गए तथा युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से प्रार्थना की कि- हे पितामह, आप हमें राज्य चलाने संबंधी उपदेश देने की कृपा करें।

तब भीष्म ने 5 दिनों तक राजधर्म, वर्णधर्म, मोक्षधर्म आदि पर उपदेश दिया। उनका उपदेश सुनकर भगवान श्रीकृष्ण संतुष्ट हुए और बोले कि गंगा पुत्र आपने कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी से पूर्णिमा तक 5 दिनों में जो धार्मिक उपदेश दिया है उससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। इस कारण आपकी स्मृति में आपके नाम पर भीष्म पंचक व्रत का प्रारंभ होगा और इन पांच दिनों में भगवान हरि की पूजा करने और भक्ति सेवा में संलग्न भक्तों को मैं शुद्ध भक्ति का वरदान देता हूँ। पांडवों के युद्ध जीतने के बाद, भीष्मदेव ने अंततः शांति अनुभव की। वह पार्थ-सारथी के रूप में अपनी दिव्य विशेषता में भगवान श्रीकृष्ण के कमल जैसे चेहरे को देखते हुए अपना शरीर छोड़ना चाहते थे। यह भगवान श्रीकृष्ण के प्रति उनकी अटूट आस्था और भक्ति को दर्शाता है, जो जीवन की सर्वोच्च पूर्णता है।

पद्म पुराण में कहा गया है कि जो भी भक्त कार्तिक मास के अंतिम 5 दिनों में इस व्रत का पालन करते हैं, वह जीवन में आध्यात्मिक उन्नति करते हैं एवं बड़े से बड़े पापों से मुक्त हो जाते हैं।

भीष्म पंचक उपवास

हरि भक्ति विलास में भीष्म पंचक व्रत में कुछ खाद्य पदार्थों से भगवान केशव की प्रसन्नता के लिए अपनी क्षमता और समर्पण के अनुसार उपवास पालन करने के लिए कहा गया है। भीष्म पंचक उपवास की 3 श्रेणियां हैं।

 

उपवास श्रेणी-1

Bhisma Panchak Vrat

पांच दिनों में से प्रत्येक दिन गाय के पांच उत्पादों को पंचगव्य के रूप में ग्रहण किया जाता है।

  1. पहला दिन: गाय का गोबर (गोमाया)
  2. दूसरा दिन: गोमूत्र (गोमूत्र)
  3. तीसरा दिन: गाय का दूध (क्षीरा)
  4. चौथा दिन: गाय का दही (दही)
  5. पांचवां दिन: गाय के सभी उत्पाद मिश्रित (पंच-गव्य)

यदि उपवास की पहली श्रेणी आपके लिए संभव नहीं है तो आप फल, मेवा और जड़ ले सकते हैं जैसा दूसरी श्रेणी में वर्णित है।

उपवास श्रेणी-2

यदि कोई भक्त उपवास की पहली श्रेणी का पालन करने में असमर्थ हैं तो वह निम्नलिखित खाद्य पदार्थ ग्रहण कर सकते हैं-

आलू, शकरकंद, मूंगफली, सादा काजू, किशमिश, खजूर, केला कच्चा, मौसम्बी, संतरा, नाशपाती, सेब, चीकू, ताजा कसा हुआ नारियल, नारियल पानी। उपर्युक्त खाद्य पदार्थों को कच्चा, उबला या बेक किया जा सकता है। स्वाद के लिए समुद्री नमक का उपयोग कर सकते हैं।

इस श्रेणी में अमरूद, अनार, ककड़ी जैसे बहुत सारे बीजों वाले फल, दुग्ध उत्पाद एवं तेल का सेवन भी वर्जित है।

उपवास श्रेणी-3

यदि कोई भक्त उपवास की दूसरी श्रेणी का पालन करने में असमर्थ हैं, तो वह “हविश्य” ले सकते हैं जैसा कि निम्नलिखित पुराणों में संदर्भित है-

सन्दर्भ: पद्म पुराण, ब्रह्म खंड, अध्याय 23; स्कंद पुराण, विष्णु खंड, कार्तिक महात्म्य, अध्याय 32; गरुड़ पुराण, पूर्वा, खंड, अध्याय 123

श्री हरि-भक्ति-विलास में वर्णित हविश्य के लिए सामग्री (13.10-13) – हविश्य बनाने में निम्नलिखित सामग्री का उपयोग किया जा सकता है, जो इन वस्तुओं से बनी खिचड़ी की तरह है।

  1. चावल
  2. शुद्ध गाय का घी
  3. गाय का दूध और मलाई
  4. समुद्री नमक
  5. कच्चा केला
  6. गेहूं
  7. नारियल पानी
  8. फल (स्कंद पुराण, नागर खंड कहते हैं कि उन्हें एक छोटे से बीज के साथ होना चाहिए या केवल कुछ बीजों के साथ)
  9. जड़ें
  10. गन्ने से बने उत्पाद (गुड़ के अलावा अन्य पदार्थ)
  11. पालक का काला साक
  12. पिपली जड़ी बूटी

कार्तिक के महीने में हविश्य के हिस्से के रूप में निम्नलिखित अवयवों से बचना चाहिए:

  1. मूंग दाल
  2. तिल का तेल
  3. बेटा-शाका
  4. शष्टिका-शाका
  5. मूली
  6. जीरा
  7. इमली

भीष्म पंचक के लिए निर्धारित अर्पण

गरुड़ पुराण के अनुसार भीष्म पंचक व्रत के दिनों में भक्तगण द्वारा भगवान श्रीकृष्ण के समक्ष  निम्नलिखित फूल अर्पित किए जाने चाहिए।

 

  1. पहले दिन, भगवान के चरणों में पद्म (कमल) के फूल अर्पित करने चाहिए।
  2. दूसरे दिन, भगवान की जाँघ पर बिल्वपत्र अवश्य अर्पित करना चाहिए।
  3. तीसरे दिन, भगवान की नाभि में गंध (सुगंध) अर्पित करना चाहिए।
  4. चौथे दिन, भगवान के कन्धों पर जावा का फूल अर्पित करना चाहिए।
  5. पांचवें दिन, भगवान के सिर पर मालती का फूल अर्पित करना चाहिए।

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Importance of Ekadashi

Importance of Ekadashi

एकादशी क्या है?

एकादशी शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ ग्यारह होता है। एकादशी को हिंदू संस्कृति में एक अत्यंत शुभ दिन माना जाता है। एकादशी मास में दो बार आती है, कृष्ण पक्ष में एवं शुक्ल पक्ष में। पूर्णिमा से अमावस्या तक की अवधि के 15 दिनों को कृष्णपक्ष एवं अमावस्या से पूर्णिमा तक की अवधि के 15 दिनों को शुक्लपक्ष कहा जाता है। कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष का ग्यारहवा दिन एकादशी होता है। आध्यात्मिक जीवन में प्रगति के लिए एकादशी के व्रत को महत्वपूर्ण माना जाता है।

एकादशी का महत्व (Importance of Ekadashi)

पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु ने एक देवी की रचना की थी जिनको एकादशी नाम दिया गया। एकादशी की रचना एक दानव मूरा को पराजित करने के लिए की गयी थी। एकादशी के द्वारा उस दानव की मृत्यु के उपरांत भगवान विष्णु ने इस कार्य से प्रसन्न होकर एकादशी को वरदान दिया कि जो भी भक्त एकादशी व्रत का पालन करेंगे तो वह सभी पापों और अशुद्धियों से मुक्त होने में सफल होंगे एवं निश्चित रूप से मोक्ष प्राप्त करेंगे।

एकादशी के व्रत का वास्तविक उद्देश्य सर्वोच्च भगवान श्रीकृष्ण के प्रति आस्था और प्रेम को बढ़ाना है। एकादशी का व्रत भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है जो एकादशी के दिन उपवास करने वाले व्यक्तियों के पापों का उद्धार करते हैं। एकादशी के व्रत से धार्मिक मनोवृत्ति और आध्यात्मिकता का विकास होता है। सभी व्रतों में से एकादशी भगवान श्रीकृष्ण को सबसे अधिक प्रसन्न करने वाली है। एकादशी का व्रत करके और हरे कृष्ण मंत्र का जप करके और इसके नियमित पालन से भक्तगण कृष्णभावनामृत में उन्नति करते हैं।

एकादशी व्रत पालन का अर्थ अन्न खाने से परहेज करने से कहीं अधिक है। एकादशी व्रत का पालन करने की पारंपरिक प्रणाली उपवास करना और रात्रि जागरण है और भगवान की महिमा का जप करना है। सभी भक्तों को कृष्णभावनामृत में आगे बढ़ने के लिए एकादशी का लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए। ब्रह्म-वैवर्त पुराण के अनुसार जो भक्त एकादशी के दिन उपवास करते हैं, वह सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाते है और पवित्र जीवन में उन्नति करते है। मूल सिद्धांत केवल उपवास करना नहीं है, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी आस्था और प्रेम को बढ़ाना है। श्रील प्रभुपाद के कथनानुसार भक्त पर्याप्त समय के साथ एकादशी पर पच्चीस माला या अधिक बार जप करें। सिर्फ पच्चीस माला ही नहीं, जितना हो सके जप करना चाहिए। असली एकादशी का अर्थ है उपवास और जप। जब कोई उपवास करता है, तो हरे कृष्ण मंत्र का जप सरल हो जाता है। अतः एकादशी के दिन जितना ​​संभव हो अन्य व्यवसाय को स्थगित करें, जब तक कि कोई आवश्यक कार्य न हो।

एकादशी के फायदे

एकादशी व्रत के मुख्य फायदे निम्नलिखित है।

  1. एकादशी के दिन उपवास करना किसी भी तीर्थ स्थान पर जाने के बराबर है। इस व्रत का पुण्य प्रसिद्ध अश्वमेध यज्ञ के समान माना जाता है।
  2. आध्यात्मिक जीवन में प्रगति होती है।
  3. यह मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करता है।
  4. इन्द्रियों पर अधिक नियंत्रण और धैर्य प्राप्त होता है।
  5. आत्म-अनुशासन और आत्म-नियंत्रण प्राप्त होता है।
  6. शरीर के विषाक्त पदार्थो से मुक्ति मिलती है। शरीर हल्का एवं ऊर्जावान महसूस करता है।
  7. मानसिक ऊर्जा सही दिशा में निर्देशित होती है।
  8. सुखद जीवन की प्राप्ति होती है।
  9. सुख समृद्धि एवं शांति प्राप्त होती है।
  10. मोह माया के बंधनो से मुक्ति मिलती है।
  11. समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
  12. एकादशी का व्रत केवल शरीर और आत्मा को शुद्ध करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि चयापचय (Metabolism) और अन्य जैविक क्रियाओं के वैज्ञानिक अनुप्रयोग में इसकी प्रासंगिकता पायी जाती है।

एकादशी व्रत कौन रख सकते हैं 

एकादशी व्रत का पालन किसी भी आयु के व्यक्ति कर सकते हैं। जैसे ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यासी, विधवा, विधुर आदि। बाल्यावस्था से वृद्धावस्था तक कोई भी भक्त इस व्रत को रख सकता है। केवल दुर्लभ मामलों में, यदि आप शारीरिक रूप से उपवास करने में असमर्थ हैं तो यह व्रत मत रखिये।

एकादशी व्रत कैसे करते हैं

  1. एकादशी का दिन भक्ति को प्रगाढ़ करने के लिए सुअवसर होता है।
  2. एकादशी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर स्नान करना चाहिए एवं भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
  3. भगवान श्रीकृष्ण तथा उनके विभिन्न अवतारों की लीलाओं का स्मरण करना चाहिए।
  4. जितनी बार संभव हो हरे कृष्ण महामंत्र का जाप करें।
  5. भगवदगीता और श्रीमद्भागवतम जैसे शास्त्रों को पढ़ना।
  6. भगवान विष्णु / श्रीकृष्ण के मंदिर में जाना चाहिए।
  7. इस व्रत को रखने वालों को हिंसा, छलकपट और झूठ से दूर रहना चाहिए और परोपकारी कार्यों में शामिल होना चाहिए।
  8. भक्त को अधिक से अधिक समय आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए उपयोग करना चाहिए। इस दिन कीर्तन एवं रात्रि जागरण का भी बहुत महत्व है।

एकादशी व्रत में क्या खाएं क्या न खाएं

एकादशी का व्रत खाद्य पदार्थों के नियमो के साथ किया जाता है जिनका पालन करना अति आवश्यक है।

क्या खाना चाहिए?

एकादशी के व्रत में निम्नलिखित खाद्य पदार्थ खाये जा सकते हैं।

  1. आलू
  2. कुट्टू का आटा से बने व्यंजन
  3. सिंघाड़े का आटा से बने व्यंजन
  4. राजगिरा का आटा से बने व्यंजन
  5. दूध एवं दूध से बने हुए व्यंजन
  6. ताजे फल एवं घर में निकाला हुआ फलो का रस
  7. सूखे मेवे
  8. सब्जियां जैसे कद्दू/सीताफल, लौकी/घीया, खीरा
  9. काली मिर्च और सेंधा नमक
  10. शकरकंद
  11. जैतून
  12. नारियल
  13. नारियल का तेल, जैतून का तेल, मूंगफली का तेल

क्या नहीं खाना चाहिए?

एकादशी के व्रत में निम्नलिखित खाद्य पदार्थो का सेवन वर्जित है

  1. चावलएकादशी के व्रत में चावल का सेवन पूर्णतः वर्जित है। इस दिन चावल का सेवन करने से पुण्यों का विनाश हो जाता है।
  2. मांस, मदिरा, मछली एवं अण्डा
  3. प्याज एवं लहसुन
  4. सभी प्रकार के अनाज जैसे गेहूँ, ज्वार, बाजरा,जौ, जई, रागी आदि
  5. सभी प्रकार की दालें जैसे मूँग, मसूर, चना, अरहर, उड़द आदि
  6. फलियां/बीन्स एवं पत्तेदार सब्जियां
  7. सब्जियां जैसे फूलगोभी/बंदगोभी, बैंगन, मटर, गाजर, शलगम, मूली, ब्रोकली, शिमला मिर्च, भिंडी, करेला, गाजर, टमाटर
  8. मैदा से बने हुए व्यंजन
  9. शहद
  10. बेकिंग पाउडर
  11. बेकिंग सोडा
  12. कस्टर्ड
  13. कुछ मसाले जैसे हींग, जायफल, सरसो, सौंफ, मेथी, कलौंजी, अजवाइन,लौंग, इलायची
  14. बाजार के पैक फलो का रस
  15. दलिया
  16. पास्ता
  17. मैकरोनी
  18. डोसा/इडली

एकादशी व्रत का पारण

एकादशी व्रत का पारण किये बिना इस व्रत को पूरा नहीं माना जाता। एकादशी का व्रत रखने के बाद इस व्रत को खोलने की विधि को पारण कहा जाता है। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। उसी समय अवधि में ही पारण करना होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है। पारण का समय जानने के लिए इस्कॉन द्वारा उपयोग किए जाने वाले वैष्णव कैलेंडर का उपयोग किया जाना चाहिए, क्योंकि एकादशी और महत्वपूर्ण त्योहारों के लिए निर्धारित तिथियां प्रत्येक संप्रदाय में पंडितों द्वारा उपयोग की जाने वाली गणना की प्रणाली के अनुसार भिन्न हो सकती हैं।

द्वादशी के दिन स्नान के बाद भगवान कृष्ण की पूजा करे एवं उसके बाद भोजन ग्रहण करे। पारण का भोजन सात्विक होना चाहिए। जिस वस्तु के त्याग से आपने एकादशी व्रत किया है, उसी वस्तु के सेवन के साथ ही व्रत खोला जाता है। जैसे यदि आपने निर्जला व्रत किया है तो पारण जल ग्रहण करके किया जा सकता है। यदि आपने अन्न का त्याग करके व्रत किया है तो अन्न के सेवन से पारण किया जा सकता है। 

नोट : द्वादशी के दिन तुलसी को नहीं तोड़ना चाहिए

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Gita Jayanti

Gita Jayanti

गीता जयंती (Gita Jayanti) वैदिक संस्कृति के पवित्र ग्रंथ श्रीमद भगवद-गीता की उत्पत्ति का प्रतीक है। वैदिक शास्त्रों के अनुसार, श्रीमद भगवद-गीता की उत्पत्ति हरियाणा के कुरुक्षेत्र में मार्गशीर्ष माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को हुई थी। महाभारत के युद्ध के दौरान, भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद गीता का वर्णन करके अर्जुन को सही दिशा में निर्देशित किया जो कि अपार ज्ञान का स्रोत है। कुरुक्षेत्र के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म और धर्म का महत्व समझाया। भगवद गीता में अठारह अध्याय और 700 श्लोक हैं। जो भी भक्त इस दिन व्रत का पालन करते है एवं भगवद गीता का पाठ करते हैं, उन्हें सर्वोच्च भगवान श्रीकृष्ण के चरणों की प्राप्ति होती है। 

गीता कथा

श्रीमद भगवद-गीता का आरम्भ महाभारत में कुरुक्षेत्र में युद्ध से पहले होता है। सुलह के कई प्रयास विफल होने के बाद, युद्ध अवश्यंभावी था। अपने भक्त एवं घनिष्ठ मित्र अर्जुन के लिए शुद्ध करुणा एवं सच्चे प्रेम से, भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध के दौरान उनका सारथी बनने का निर्णय लिया। अंततः युद्ध का दिन आ ही गया, और सेनाएं युद्ध के मैदान में आमने-सामने आ गईं। जैसे ही युद्ध शुरू होने वाला था, अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से रथ को युद्ध के मैदान के बीच में, सेनाओं के बीच, विरोधी ताकतों को और अधिक निकट से देखने के लिए चलाने के लिए कहा।

अपने पितामह, भीष्म, जिन्होंने उन्हें बचपन से ही बड़े प्यार से पाला था, और उनके शिक्षक, द्रोणाचार्य, जिन्होंने उन्हें सबसे बड़ा धनुर्धर बनने के लिए प्रशिक्षित किया था, को देखकर अर्जुन का हृदय पिघल गया। उनका शरीर कांपने लगा एवं मन भ्रमित हो गया। वह क्षत्रिय (योद्धा) के रूप में अपना कर्तव्य पालन करने में असमर्थ हो गए। वह इस विचार से कमजोर और बीमार अनुभव कर रहे थे कि उन्हें इस युद्ध में अपने परिजनों, मित्रों एवं सम्मानित व्यक्तियों का वध करना होगा। निराश होकर उन्होंने श्रीकृष्ण को अपनी दुविधा के बारे में अवगत कराया और उनसे परामर्श माँगा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवद गीता के रूप में वैदिक ज्ञान का सार प्रदान किया और उन्हें जीवन के अंतिम लक्ष्य के बारे में बताया। 

श्रीमद भगवद-गीता माहात्म्य

भगवद-गीता का शाब्दिक अर्थ है “सर्वोच्च भगवान का गीत”। यह संसार में सबसे व्यापक रूप से ज्ञात वैदिक साहित्य है।  

निम्नलिखित श्लोकों से हम श्रीमद भगवद गीता का महत्व जान सकते हैं:

गीता शास्त्रं इदं पुण्यम्, यह पथे प्रयातः पूमण
विश्नोह पदम अवपनोती, भयशोकदिवर्जितः।

 जो एक नियमित मन के साथ, भक्ति के साथ इस भगवद-गीता शास्त्र का पाठ करता है, जो सभी गुणों का दाता है, वह वैकुंठ जैसे पवित्र निवास को प्राप्त करेगा, भगवान विष्णु का निवास, जो भय एवं विलाप पर आधारित सांसारिक गुणों से सदैव मुक्त होता है। (गीता माहात्म्य श्लोक 1)

गीता माहात्म्य में आगे वर्णित है,

सर्वोपनिषदो गावो, दोग्धा गोपालनंदना:
पार्थो वत्स सुधीर भोक्ता, दुग्धाम गीतामृतं महतो

सभी उपनिषद गाय की तरह हैं, और गाय का दूध देने वाले भगवान श्रीकृष्ण हैं, जो नंद के पुत्र हैं। अर्जुन बछड़ा है, गीता का सुंदर अमृत दूध है, और उत्तम आस्तिक बुद्धि के भाग्यशाली भक्त उस दूध को पीने वाले और भोक्ता हैं। (गीता माहात्म्य श्लोक 6)

गीता जयंती (Gita Jayanti) के अवसर पर प्रति वर्ष, भगवान श्रीकृष्ण के भक्त इकट्ठा होते हैं और भगवद गीता के 700 श्लोकों का पाठ करते हैं। इस अवसर पर इस्कॉन के संस्थापक आचार्य परम पूज्य श्रील प्रभुपाद द्वारा संकलित भगवद गीता- यथारूप की प्रतियों का वितरण किया जाता हैं। गीता पुस्तक मैराथन का आयोजन होता है और भक्तजन समाज में  भगवद गीता वितरित करने में भाग लेते हैं।

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कार्तिक मास (Kartik Maas)

कार्तिक मास (Kartik Maas)

कार्तिक मास (Kartik Maas) हिंदू संस्कृति में एक अत्यंत पवित्र मास है। इसे दामोदर मास के नाम से भी जाना जाता है। यह पवित्र मास भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना के लिए समर्पित है एवं वैदिक शास्त्रों के अनुसार तपस्या करने के लिए सर्वश्रेष्ठ समय के रूप में वर्णित किया गया है।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, सभी पौधों में से, पवित्र तुलसी मुझे सबसे प्रिय है; सभी महीनों में कार्तिक सबसे प्रिय है, सभी तीर्थों में, मेरी प्रिय द्वारिका सबसे प्रिय है, और सभी दिनों में एकादशी सबसे प्रिय है। (पद्म पुराण, उत्तर खण्ड 112.3)

जैसे सतयुग के समान कोई युग नहीं है, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं है, और गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है, वैसे ही कार्तिक के समान कोई मास नहीं है (स्कंद पुराण)। जो भक्तगण कार्तिक मास के दौरान भक्तिमय सेवा करते हैं, उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की व्यक्तिगत कृपा बहुत सरलता से प्राप्त हो जाती है। कार्तिक मास में भक्त उपवास करते हैं, दामोदर स्वरुप श्रीकृष्ण की पूजा घी के दीपक से करते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं, दामोदर लीला का महिमामंडन करते हैं, मंत्रों का जाप करते हैं और पवित्र नदियों में स्नान करते हैं जिस से वह स्वंय को सर्वोच्च भगवान श्रीकृष्ण के करीब अनुभव कर सकें।

कार्तिक मास महत्व

पवित्र कार्तिक मास की महिमा का वर्णन करने वाले कुछ शास्त्रों (पुराणों) के अंश निम्नलिखित हैं-

1.) भविष्य पुराण के अनुसार, हे ऋषि, जो भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर के अंदर और बाहर दीप-माला की व्यवस्था करता है, वह उन्हीं द्वीपों द्वारा प्रकाशित पथ पर परमधाम के लिए प्रस्थान करेगा। (१४०) (स्कंद पुराण, ब्रह्मा और नारद के बीच संवाद) एक व्यक्ति जो कार्तिक के दौरान और विशेष रूप से एकादशी के दिनों में एक सुंदर दीप-माला की व्यवस्था करता है, जब भगवान जागते हैं, अपने तेज से चारों दिशाओं को प्रकाशित करते हैं और स्थित होते हैं। एक चमकदार वाहन पर, अपने शरीर की चमक से ब्रह्मांड को रोशन करते है। वे जितने घी के दीयों की व्यवस्था करते थे, उतने हजारों वर्षों तक भगवद्धाम में रहेंगे।

2.) कार्तिक माह (Kartik Month) में दीप जलाना भगवान श्रीकृष्ण की सेवा है। भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर के अंदर और बाहर दीप-माला की व्यवस्था करने से व्यक्ति को भगवान के समान स्वरूप की प्राप्ति होती है।

3.) कार्तिक मास (Kartik Maas) में जब कोई दीपक अर्पित करता है तो उसके लाखों-करोड़ों पाप पलक झपकते ही नष्ट हो जाते हैं।

4.) जो भक्त भगवान केशव को प्रसन्न करने के लिए दीपक अर्पित करते हैं, वह इस मृत्युलोक में पुनः जन्म नहीं लेते।

5.) कार्तिक मास में दीप अर्पित करने से सूर्य ग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में स्नान करने या चंद्र ग्रहण के समय नर्मदा नदी में स्नान करने से प्राप्त फल से दस लाख गुना अधिक पुण्य फल प्राप्त होता है।

6.) जो भक्त घी का दीपक अर्पित करते हैं, उन्हें अश्वमेध-यज्ञ करने से क्या लाभ? इस प्रकार के दीपदान से अनेक अश्वमेध-यज्ञों का फल प्राप्त होता है।

7.)यदि कोई भगवान श्री हरि के मंदिर में थोड़े समय के लिए भी (कार्तिक के मास में) (Kartik Month) दीपक जलाता है, तो उसने लाखों कल्पों के लिए जो भी पाप अर्जित किए हैं (एक कल्प 1000 युग के बराबर) सभी नष्ट हो जाते हैं।

8.) किसी के जीवन में भले ही कोई मंत्र न हो, कोई पवित्र कर्म न हो, और कोई पवित्रता न हो, उनके जीवन में भी कार्तिक मास में दीपक अर्पण करने से सब कुछ सही हो जाता है।

9.) जो भक्त कार्तिक के महीने (Kartik Month) में भगवान केशव को दीपक अर्पित करते है, उन्हें सभी यज्ञों और सभी पवित्र नदियों में स्नान करने के समान फल प्राप्त होता है।

10.) पितृ पक्ष के अनुसार, जब परिवार में कोई कार्तिक के महीने में भगवान केशव को दीपदान से प्रसन्न करता है, तो भगवान की कृपा से जो सुदर्शन-चक्र को अपने हाथ में रखते हैं, सभी पितरों को मुक्ति मिल जाएगी।

11.) कार्तिक मास में दीपक अर्पण से मेरु पर्वत या मंदरा पर्वत जितना बड़ा पापों का संग्रह जल जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं है।

12.) जो व्यक्ति कार्तिक मास में दीप अर्पित करता है, उसे वह फल प्राप्त होता है जो सौ यज्ञों या सौ तीर्थों से भी प्राप्त नहीं किया जा सकता।

13.) सभी पापों का आदी और सभी पवित्र कार्यों से विमुख व्यक्ति भी, जो कार्तिक के दौरान किसी तरह दीपक अर्पित करता है, वह शुद्ध हो जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं है।

14.) तीनों लोकों में कहीं भी ऐसा कोई पाप नहीं है जो कार्तिक के दौरान भगवान केशव को दीप अर्पित करने से शुद्ध न हो।

15.) जो व्यक्ति कार्तिक के दौरान भगवान श्रीकृष्ण को दीपक अर्पित करता है, वह शाश्वत आध्यात्मिक संसार को प्राप्त करता है जहां कोई दुःख नहीं है।

16.) जिस प्रकार अग्नि सभी लकड़ी में विद्यमान होती है और घर्षण द्वारा निकाली जा सकती है, उसी प्रकार कार्तिक मास के दौरान दीपक की भेंट में पवित्रता सदैव स्थित रहती है। इसमें कोई संदेह नहीं है।

17.) जब कोई कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन उन्हें एक दीपक देता है, तो भगवान श्रीकृष्ण, यह पाते हुए कि उनके पास उस उपहार को चुकाने के लिए पर्याप्त धन नहीं है, वह स्वयं को उस दीपक के बदले में दे देते हैं।

18.) जो कार्तिक मास (Kartik Maas) के दौरान भगवान हरि को एक स्थिर दीपक अर्पित करता है, वह भगवान हरि के आध्यात्मिक संसार में लीलाओं का आनंद लेता है।

19.) यहां तक कि जो कभी भी धार्मिक अनुष्ठान नहीं करता है या यहां तक कि सबसे खराब पापी भी इस दीप-दान से निश्चित रूप से शुद्ध हो जाएगा। तीनों लोकों में कोई पाप नहीं है जो इस कार्तिक दीप के सम्मुख खड़ा हो सके। वास्तव में, इस दीप को भगवान वासुदेव के सामने प्रस्तुत करके, बिना किसी बाधा के शाश्वत निवास प्राप्त किया जा सकता है।

20.) पितृ पक्ष में अन्न दान करने से या ज्येष्ठ या आषाढ़ के गर्म महीनों में पानी बांटने से प्राप्त सभी फल कार्तिक के दौरान दीप को अर्पित करने से आसानी से प्राप्त हो जाते हैं।

21.) जो व्यक्ति पूरे कार्तिक मास में दिन में केवल एक बार भोजन करता है, वह बहुत प्रसिद्ध, शक्तिशाली और वीर बन जाता है।

22.) हे नारद! मैंने व्यक्तिगत रूप से देखा है कि जो व्यक्ति कार्तिक माह में भगवद्गीता का पाठ करता है, वह जन्म-मरण के लोक में नहीं लौटता।

23.) सभी उपहारों में से कार्तिक माह (Kartik Month) में दीपक का उपहार सबसे अच्छा होता है। कोई उपहार उसके समान नहीं है।

24.) सभी पवित्र स्थानों में स्नान करके और सभी दान देने से जो पुण्य फल मिलता है, वह कार्तिक के व्रत का पालन करने से प्राप्त फल के दस लाखवें भाग के बराबर नहीं है।

 

कार्तिक मास का पालन किस प्रकार करें?

1.) कार्तिक मास में प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर स्नान करना चाहिए. ब्रह्म खण्ड के अनुसार श्री हरि के अति प्रिय कार्तिक मास में जो व्यक्ति प्रात:काल स्नान करता है, उसे समस्त तीर्थों में स्नान करने का पुण्य प्राप्त होता है। श्रील सनातन गोस्वामी कहते हैं कि भगवान के समक्ष प्रण करना चाहिए, हे भगवान दामोदर, हे भगवान, जो भक्तों को कष्टों से बचाते हैं, हे देवताओं के स्वामी, आपको और देवी राधा को प्रसन्न करने के लिए, मैं कार्तिक के महीने में हर सुबह स्नान करूंगा। (पाठ १७२, अध्याय: सोलहवां विलास, श्री हरि भक्ति विलास)।

2.) यदि संभव हो तो हमें मंदिर के दर्शन करने और भक्तों के साथ भगवान को दीप अर्पित करने का प्रयास करना चाहिए।

3.) प्रतिदिन भगवान श्रीकृष्ण को घी का दीपक अर्पित करें और ध्यान करते हुए दामोदराष्टकम का गान करें। जो कोई कार्तिक के महीने में भगवान को घी का दीपक अर्पित करता है, वह सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है, और भगवान हरि के निवास को जाता है।

4.) सर्वोच्च भगवान हरि का सदैव स्मरण करना चाहिए। भक्तों को अधिक से अधिक हरिनाम जप करने का प्रयास करना चाहिए। जितना अधिक से अधिक संभव हो, माला एवं कीर्तन करें।

5.) यदि संभव हो तो प्रतिदिन उच्च वैष्णवों की संगति में श्रीमद्भागवत का पाठ करें। इस मास में साधुओं से शास्त्र सुनने के पक्ष में अन्य सभी कर्तव्यों का त्याग कर देना चाहिए। श्रीमद्भागवतम् के ८वें सर्ग से गजेंद्र मोक्ष लीला-स्तव का पाठ करना और पढ़ना सबसे अधिक फायदेमंद है, जो सर्वोच्च भगवान के पूर्ण समर्पण / निर्भरता की शिक्षा देता है।

6.) प्रतिदिन श्री चैतन्य महाप्रभु के शिक्षाष्टकम् का पाठ करें और इसके अर्थ पर ध्यान करें। भक्तिविनोद ठाकुर द्वारा शिक्षाष्टकम् पर भाष्य पढ़ें।

7.) प्रतिदिन श्रील रूप गोस्वामी के उपदेशामृत का पाठ करें।

8.) प्रतिदिन तुलसी देवी को दीप अर्पित करें और वृंदावन में शाश्वत निवास और राधा और कृष्ण के चरण कमलों की शाश्वत सेवा के लिए प्रार्थना करें। तुलसी देवी की 3 परिक्रमा करें।

9.) भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए अच्छा प्रसाद बनायें। भक्तों को अन्नकूट, गिरिराज गोवर्धन पूजा के त्योहार का पालन करना चाहिए।

10.) इस मास में भक्तों का अधिक से अधिक सान्निध्य करें।

11.) ब्रह्मचर्य का अभ्यास करना चाहिए।

12.) संयमता का पालन करना चाहिए।

13.) इस पवित्र मास में वैष्णव आलोचना से बचें।

14.) दूसरों में दोष न खोजे एवं किसी से ईर्ष्या न करें।

15.) इस मास के दौरान हमें चार नियामक सिद्धांतों का पालन करने का पूरा प्रयास करना चाहिए- मांस न खाना, जुआ न खेलना, नशा न करना, एवं अवैध सम्बन्ध स्थापित न करना।

16.) सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारी चेतना को निचे गिराने वाले निकृष्ट कार्यों में रात को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। रात के समय जितना हो सके हमें भगवान के नाम का जप करना चाहिए एवं श्रीमद्भागवत का पाठ करना चाहिए।

कातिक मास में क्या खाएं, क्या खाएं

1.) भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किया गया प्रसाद ही ग्रहण करना चाहिए।

2.) भगवान श्रीकृष्ण के कई भक्त एक मास के लिए कुछ ऐसा त्याग कर देते हैं जो उन्हें पसंद है। उदाहरण के लिए यदि किसी को दूध पसंद है, तो वह एक महीने के लिए दूध और उसके उत्पादों को छोड़ देता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति भगवान को प्रसन्न करने के लिए भक्ति और तपस्या दिखा रहा है।

3.) कई भक्त दिन में केवल एक बार ही भोजन करते हैं।

4.) पवित्र कार्तिक मास में शहद, तिल, तिल का तेल, हींग, बैंगन, राजमा, उड़द दाल (कोई भी खिचड़ी ), करेला, तले हुए खाद्य पदार्थ जैसे समोसा एवं पकोड़े आदि का सेवन वर्जित है।

5.) इस पवित्र मास के दिनों में मांस और नशीले पदार्थों का सेवन न करें। यदि आपने अभीअभी भक्ति जीवन का अभ्यास करना शुरू किया है और मांस खाना या नशा पूरी तरह त्याग नहीं पाएं हैं तो कम से कम कार्तिक के पवित्र महीने के दौरान इसमें शामिल न होने का प्रयास कर सकते हैं। और यदि आप कार्तिक मास के दौरान इसका पालन करेंगे तो भगवान श्रीकृष्ण और श्रीमती राधारानी बहुत प्रसन्न होंगे और मांस और नशे को हमेशा के लिए छोड़ने का संकल्प देंगे।

6.) जो लोग चाय और कॉफी का सेवन करते हैं, वे भी कम से कम इस महीने के लिए इसे बंद कर सकते हैं और आवश्यकता पड़ने पर हर्बल चाय का सेवन कर सकते हैं।

7.) चाय, कॉफी, मांस, मदिरा या कोई अन्य नशीला पदार्थ हमारे शरीर के लिए आवश्यक नहीं हैं परन्तु दुर्भाग्यवश हममें से कई लोगों ने सामाजिक दबाव के कारण या अज्ञानता के कारण इसका सेवन करना शुरू कर दिया और अब इसे छोड़ना मुश्किल है। परन्तु यदि कम से कम कार्तिक के महीने में हम किसी भी ऐसी गतिविधि नहीं करने का संकल्प लेते हैं जो शास्त्रों द्वारा निषिद्ध है तो भगवान श्रीकृष्ण हमारे और उनके बीच आने वाली सभी चीजों को त्यागने के हमारे संकल्प को मजबूत करेंगे।

सोशल मीडिया की लत

आज समाज में बहुत से लोग फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर जैसे सोशल प्लेटफार्म के आदी हैं। हम संदेशों की जांच करने, एवं संदेशों को अग्रेषित करने में घंटों बिताते हैं। मैंने देखा है कि मुझे सोशल मीडिया पर सैकड़ों संदेश मिलते हैं और उनमें से अधिकांश मैं शायद ही कभी पढ़ पाता हूँ। और यह कई अन्य लोगों के लिए भी सत्य है। कई बार नामजप करते समय हम अपने व्हाट्सएप, फेसबुक या ट्विटर की जांच करते हैं। यध्यपि संदेश आध्यात्मिक हो सकता है परन्तु हमें स्वयं से यह पूछने की आवश्यकता है कि क्या यह हमें सर्वोच्च भगवान श्रीकृष्ण के करीब आने में मदद कर रहा है?  इस पवित्र मास में हमें सोशल मीडिया का विवेकपूर्ण उपयोग करने की आवश्यकता है ताकि यह हमारी भक्ति यात्रा को प्रभावित न करे।

दामोदर लीला (Damodar Leela)

एक बार अपनी दासी को घर के अन्य कार्यों में लगा हुआ देखकर माता यशोदा ने स्वयं ही मक्खन का मंथन किया। जब उन्होंने मक्खन का मंथन किया, तो उन्होंने अपने पुत्र श्रीकृष्ण की बाल्यावस्था की अद्भुत लीलाएँ गाईं और उनके बारे में सोचकर आनंद लिया। उस समय श्रीकृष्ण वहाँ प्रकट हुए और वह भूखे थे। वह चाहते थे कि माता मक्खन मथना बंद करे और पहले उन्हें खिलाएं।

माता यशोदा ने अपने पुत्र को गोद में उठा लिया और उन्हें दूध पिलाने लगी। जब श्रीकृष्ण दूध पी रहे थे तो माता यशोदा मुस्कुराई और अपने बालक की सुंदरता का आनंद लिया। अचानक चूल्हे पर रखा दूध उबलने लगा। दूध को छलकने से रोकने के लिए, माता यशोदा ने तुरंत श्रीकृष्ण को एक तरफ रख दिया और चूल्हे पर चली गई। अपनी माता द्वारा उस अवस्था में छोड़े जाने पर, श्रीकृष्ण बहुत क्रोधित हो गए, और उनके होंठ और आँखें क्रोध से लाल हो गईं। उन्होंने अपने दाँत और होठों को दबाया, और पत्थर का एक टुकड़ा उठाकर तुरंत मक्खन के बर्तन को तोड़ दिया। उन्होंने उसमें से मक्खन निकाला, और आँखों में झूठे आँसू के साथ एक सुनसान जगह में बैठ कर मक्खन खाने लगे।

इसी बीच माता यशोदा दूध के बर्तन को क्रम से लगाकर मंथन स्थल पर लौट आईं। उन्होंने टूटा हुआ बर्तन देखा, जिसमें मथा हुआ दही रखा हुआ था। चूंकि उन्हें अपना पुत्र नहीं मिला, इसलिए उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि टूटा हुआ बर्तन बालक का ही काम था।

वह सोच कर मुस्कुराई, बालक बहुत चतुर है। घड़ा तोड़ने के बाद दंड के भय से वह यहां से चला गया है। जब उन्होंने इधर-उधर खोज की, तो अपने पुत्र को लकड़ी के एक बड़े ऊखल पर बैठा पाया, जिसे उल्टा रखा गया था। वह एक झूले पर छत से लटके हुए बर्तन से मक्खन ले रहा था और उसे बंदरों को खिला रहा था।

माता यशोदा ने देखा कि श्रीकृष्ण उनके नटखट व्यवहार के प्रति सचेत थे, क्योंकि वह उनके डर से इधर उधर देख रहे थे। अपने पुत्र को इतना व्यस्त देखकर, वह चुपचाप पीछे से उनके पास पहुंची। यध्यपि, श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने हाथ में एक छड़ी के साथ अपनी ओर आते देखा, और वह तुरंत ऊखल से नीचे उतर गए और भय के मारे भागने लगे। माता यशोदा ने भगवान के सर्वोच्च व्यक्तित्व को पकड़ने की कोशिश करते हुए, सभी कोनों में उनका पीछा किया, जो महान योगियों के ध्यान से भी कभी संपर्क नहीं करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण, जो योगियों अथवा तपस्वियों द्वारा कभी नहीं पकड़े जाते हैं, माता यशोदा जैसे महान भक्त के लिए एक छोटे बच्चे की तरह खेल रहे थे।

यध्यपि माता यशोदा अपनी पतली कमर और भारी शरीर के कारण तेज दौड़ने वाले बालक सरलता से पकड़ नहीं पा रही थी, फिर भी उन्होंने जितना शीघ्र हो सके उनका पीछा करने का प्रयास किया। उनके बाल ढीले हो गए और बालों में लगे फूल जमीन पर गिर पड़े। वह थकी हुई थी, फिर भी वह किसी तरह अपने शरारती बालक के पास पहुँची और उन्हें पकड़ लिया। जब श्रीकृष्ण पकड़े गए तो लगभग रोने की कगार पर थे। उन्होंने अपने हाथों को अपनी आँखों पर रख दिया, जिन पर काली आँखों के सौंदर्य प्रसाधनों से अभिषेक किया गया था। उन्होंने अपनी माता का चेहरा देखा, जब वह उनके ऊपर खड़ी थी, और उनकी आँखें भय से बेचैन हो गईं।

बालक को भयभीत देख कर माता यशोदा ने अपनी छड़ी फेंक दी। उन्हें दंडित करने के लिए, उन्होंने सोचा कि वह उनके हाथों को कुछ रस्सियों से बाँध दे। परन्तु जब उन्होंने श्रीकृष्ण को बांधने का प्रयास किया, तो पाया कि वह जिस रस्सी का उपयोग कर रही थी वह दो इंच छोटी थी। उन्होंने घर से और रस्सियाँ इकट्ठी करके उसमें जोड़ दीं, लेकिन फिर भी उन्हें वही कमी नज़र आई। इस प्रकार उन्होंने घर में उपलब्ध सभी रस्सियों को जोड़ा, परन्तु जब अंतिम गाँठ जोड़ी गई, तो उन्होंने देखा कि रस्सी अभी भी दो इंच छोटी थी। माता यशोदा आश्चर्यचकित रह गयीं। यह सब किस प्रकार सभव था?

श्रीकृष्ण को बांधने के प्रयास में वह थक गई। उन्हें पसीना आ रहा था, और उनके सिर की माला नीचे गिर गई। तब भगवान ने अपनी माता के कठिन परिश्रम की प्रशंसा की, और उन पर दया करते हुए, वे रस्सियों से बंधने के लिए सहमत हुए। माता यशोदा के घर में मानव बालक के रूप में खेल रहे भगवान अपनी चुनी हुई लीलाएं कर रहे थे।

शुद्ध भक्त स्वयं को भगवान के चरण कमलों में समर्पित कर देता है, जो भक्त की रक्षा या पराजय कर सकते हैं। इसी तरह, भगवान भी भक्त की सुरक्षा के लिए स्वयं को समर्पित करके दिव्य आनंद का अनुभव करते हैं। यह श्रीकृष्ण द्वारा अपनी माता यशोदा के प्रति समर्पण का उदाहरण था।

पुत्र को बांधकर माता यशोदा घर के कामों में लग गई। उस समय, लकड़ी के ऊखल से बंधे हुए, भगवान अपने सामने बहुत ऊंचे पेड़ों की एक जोड़ी देख सकते थे (जिन्हें अर्जुन के पेड़ के रूप में जाना जाता था) जिसे उन्होंने नीचे खींचने के बारे में सोचा। अपने पिछले जन्मों में, पेड़ों ने कुबेर के मानव पुत्रों के रूप में जन्म लिया, और उनके नाम नलकुवर और मणिग्रीव थे। सौभाग्य से, वे प्रभु के दर्शन के भीतर आ गए। अपने पूर्वजन्म में उन्हें महान ऋषि नारद ने भगवान श्रीकृष्ण को देखने का सर्वोच्च आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए शाप दिया था। उन्हें यह वरदान-शाप नशे के कारण भूल जाने के कारण दिया गया था।

(श्रीमद्भागवत पुराण के दसवें अध्याय के दसवें स्कंध में एक कथा है, कुबेर के दोनों पुत्र नलकूबर और मणिग्रीव भगवान रुद्र के सेवक थे। धनी होने एवं भगवान शिव की कृपा कारण दोनों बहुत गर्वोन्मत्त हो गए। एक दिन वे दोनों मन्दाकिनी नदी के तट पर मदिरा पीकर मद में चूर हो गये। अप्सराएँ उनके साथ गा-बजा रहीं थीं और वे पुष्पों से लदे हुए वन में उनके साथ विहार कर रहे थे। दैवयोगवश देवर्षि नारद जी उस स्थान से  निकले। देवर्षि नारद को देखकर वस्त्रहीन अप्सराएं लज्जित हो गयी एवं भयभीत होकर तीव्रता से अपने वस्त्र पहन लिये, परन्तु इन दोनों कुबेर पुत्रों कोई लज्जा नहीं दिखाई, वे उसी प्रकार नग्न अवस्था में क्रीड़ा करते रहे। जब देवर्षि नारद ने देखा कि ये देवताओं के पुत्र होकर भी गर्व एवं मद से अन्धे और उन्मत्त हो रहे हैं, तब उन्होंने उन दोनों को श्राप देते हुए कहा कि अहंकार के कारण तुम दोनों का व्यवहार जड़ के समान हो गया है इसलिए तुम लोग वृक्ष बन जाओ। सौ वर्षों के बाद जब भगवान श्रीकृष्ण का अवतार होगा तो वह तुम्हें शाप मुक्त करेंगे।नारद मुनि के शाप से नलकुबर और मणिग्रीव अर्जुन वृक्ष बन गए। इन दोनों वृक्षों के साथ-साथ होने के कारण इन्हें यमलार्जुन कहा गया।)

जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण ने खींचा, दो पेड़, उनकी सभी शाखाओं और अंगों के साथ, एक महान ध्वनि के साथ तुरंत नीचे गिर गए। गिर कर टूटे हुए पेड़ों में से दो महान आत्माएं निकलीं, जो धधकती अग्नि की तरह चमक रही थीं। उनकी उपस्थिति से सभी दिशाएं रोशन हो गयी। दो शुद्ध व्यक्तित्व तुरंत बाल कृष्ण के सामने आए और अपना सम्मान और प्रार्थना करने के लिए झुक गए। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण द्वारा कुबेर पुत्रों, – नलकुवर और मणिग्रीव का उद्धार किया गया।

उस दिन से, कार्तिक (दामोदर) मास को दामोदर-लीला की याद में मास भर चलने वाले उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जो भगवान श्रीकृष्ण द्वारा मक्खन चुराने की लीला है और फलस्वरूप उनकी प्रिय माता यशोदा द्वारा ऊखल से बांधा जाता है। संस्कृत में दाम का अर्थ रस्सी और उदार का अर्थ पेट होता है। दामोदर श्रीकृष्ण को संदर्भित करता है जो उनकी माता यशोदा द्वारा स्नेह की रस्सी से बंधे थे।

kartik maas

श्री दामोदराष्टकम

यह प्रार्थना गीत भगवान श्रीकृष्ण की बाल्यावस्था की लीलाओं का वर्णन करता है जब उन्होंने अपनी माता यशोदा से भागने की कोशिश की जब उन्होंने मक्खन चुराने के लिए उन्हें दंडित करने की कोशिश की। भगवान श्रीकृष्ण वृंदावन की महिलाओं एवं गोपियों से मक्खन चुराते थे। एक बार उनकी माता यशोदा ने उसे पकड़ लिया, उसकी कमर को रस्सी से बाँध दिया, और उन्हें दंडित करने के लिए ओखली से बाँध दिया। इसलिए भगवान को दामोदर के रूप में भी जाना जाता है (दाम का अर्थ है रस्सी, और उदारा का अर्थ है कमर)।

कार्तिक मास (Kartik Maas) के दौरान, भक्तगण प्रतिदिन भगवान श्रीकृष्ण के दामोदर स्वरुप के सम्मुख घी के दीपक का अर्पण करते हुए इस प्रार्थना को गाते हैं। दीपदान करते समय भगवान के दाहिने पैरों के चारों ओर दो बार और बाएं पैरों के चारों ओर दो बार दीप दिखाएँ। उसके बाद दो बार पेट के आसपास दीप दिखाएँ। फिर सिर के चारों ओर तीन बार दीप दिखाएँ। अंत में भगवान के पूरे शरीर के चारों ओर 7 बार दीप दिखाएँ।  प्रत्येक श्लोक में भगवान के विभिन्न गुणों का वर्णन किया गया है, जो इस समय में, एक बालक के रूप में प्रकट होते हैं और अपने भक्तों के स्नेह से स्वयं को कैद करने की अनुमति देते हैं। नीचे दिए गए आठ-श्लोक की प्रार्थना गाएं, जिसमें हिंदी अनुवाद भी हैं।

नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं
लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानं
यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं
परामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या ॥ १॥

जिनके कपोलों पर दोदुल्यमान मकराकृत कुंडल क्रीड़ा कर रहे है, जो गोकुल नामक अप्राकृत चिन्मय धाम में परम शोभायमान है, जो दधिभाण्ड (दूध और दही से भरी मटकी) फोड़ने के कारण माँ यशोदा के भय से भीत होकर ओखल से कूदकर अत्यंत वेगसे दौड़ रहे है और जिन्हें माँ यशोदा ने उनसे भी अधिक वेगपूर्वक दौड़कर पकड़ लिया है ऐसे उन सच्चिदानंद स्वरुप, सर्वेश्वर श्री कृष्ण की मै वंदना करता हूँ ।

रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तम्
कराम्भोज-युग्मेन सातङ्क-नेत्रम्
मुहुः श्वास-कम्प-त्रिरेखाङ्क-कण्ठ
स्थित-ग्रैवं दामोदरं भक्ति-बद्धम् ॥ २॥

जननी के हाथ में छड़ी देखकर मार खानेके भय से डरकर जो रोते रोते बारम्बार अपनी दोनों आँखों को अपने हस्तकमल से मसल रहे हैं, जिनके दोनों नेत्र भय से अत्यंत विव्हल है, रोदन के आवेग से बारम्बार श्वास लेनेके कारण त्रिरेखायुक्त कंठ में पड़ी हुई मोतियों की माला आदि कंठभूषण कम्पित हो रहे है, और जिनका उदर (माँ यशोदा की वात्सल्य-भक्ति के द्वारा) रस्सी से बँधा हुआ है, उन सच्चिदानंद स्वरुप, सर्वेश्वर श्री कृष्ण की मै वंदना करता हूँ ।

इतीदृक् स्वलीलाभिरानंद कुण्डे
स्व-घोषं निमज्जन्तम् आख्यापयन्तम्
तदीयेशितज्ञेषु भक्तिर्जितत्वम
पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे ॥ ३॥

जो इस प्रकार दामबन्धनादि-रूप बाल्य-लीलाओं के द्वारा गोकुलवासियों को आनंद-सरोवर में नित्यकाल सरावोर करते रहते हैं, और जो ऐश्वर्यपुर्ण ज्ञानी भक्तों के निकट “मैं अपने ऐश्वर्यहीन प्रेमी भक्तों द्वारा जीत लिया गया हूँ” – ऐसा भाव प्रकाश करते हैं, उन दामोदर श्रीकृष्ण की मैं प्रेमपूर्वक बारम्बार वंदना करता हूँ ।

वरं देव! मोक्षं न मोक्षावधिं वा
न चान्यं वृणेऽहं वरेशादपीह
इदं ते वपुर्नाथ गोपाल बालं
सदा मे मनस्याविरास्तां किमन्यैः ॥ ४॥

हे देव, आप सब प्रकार के वर देने में पूर्ण समर्थ हैं। तो भी मै आपसे चतुर्थ पुरुषार्थरूप मोक्ष या मोक्ष की चरम सीमारूप श्री वैकुंठ आदि लोक भी नहीं चाहता और न मैं श्रवण और कीर्तन आदि नवधा भक्ति द्वारा प्राप्त किया जाने वाला कोई दूसरा वरदान ही आपसे माँगता हूँ। हे नाथ! मै तो आपसे इतनी ही कृपा की भीख माँगता हूँ कि आपका यह बालगोपालरूप मेरे हृदय में नित्यकाल विराजमान रहे। मुझे और दूसरे वरदान से कोई प्रयोजन नहीं है।

इदं ते मुखाम्भोजम् अत्यन्त-नीलैः
वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश्च गोप्या
मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं मे
मनस्याविरास्तामलं लक्षलाभैः ॥ ५॥

हे देव, अत्यंत श्यामलवर्ण और कुछ-कुछ लालिमा लिए हुए चिकने और घुंघराले लाल बालो से घिरा हुआ तथा माँ यशोदा के द्वारा बारम्बार चुम्बित आपका मुखकमल और पके हुए बिम्बफल की भाँति अरुण अधर-पल्लव मेरे हृदय में सर्वदा विराजमान रहे । मुझे लाखों प्रकार के दूसरे लाभों की आवश्यकता नहीं है।

नमो देव दामोदरानन्त विष्णो
प्रभो दुःख-जालाब्धि-मग्नम्
कृपा-दृष्टि-वृष्ट्याति-दीनं बतानु
गृहाणेष मामज्ञमेध्यक्षिदृश्यः ॥ ६॥

हे देव! हे (भक्तवत्सल) दामोदर! हे (अचिन्त्य शक्तियुक्त) अनंत! हे (सर्वव्यापक) विष्णो! हे (मेरे ईश्वर) प्रभो! हे (परमस्वत्रन्त) ईश! मुझपर प्रसन्न होवे! मै दुःखसमूहरूप समुद्र में डूबा जा रहा हूँ। अतएव आप अपनी कृपादृष्टिरूप अमृतकी वर्षाकर मुझ अत्यंत दीन-हीन शरणागत पर अनुग्रह कीजिये एवं मेरे नेत्रों के सामने साक्षात् रूप से दर्शन दीजिये।

कुबेरात्मजौ बद्ध-मूर्त्यैव यद्वत्
त्वया मोचितौ भक्ति-भाजौ कृतौ च
तथा प्रेम-भक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ
न मोक्षे ग्रहो मेऽस्ति दामोदरेह ॥ ७॥

हे दामोदर! जिस प्रकार अपने दामोदर रूप से ओखल में बंधे रहकर भी (नलकुबेर और मणिग्रिव नामक) कुबेर के दोनों पुत्रों का (नारदजी के श्राप से प्राप्त) वृक्षयोनि से उद्धार कर उन्हें परम प्रयोजनरूप अपनी भक्ति भी प्रदान की थी, उसी प्रकार मुझे भी आप अपनी प्रेमभक्ति प्रदान कीजिये – यही मेरा एकमात्र आग्रह है। किसी भी अन्य प्रकार के मोक्ष के लिए मेरा तनिक भी आग्रह नहीं है ।

नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्-दीप्ति-धाम्ने
त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने
नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै
नमोऽनन्त-लीलाय देवाय तुभ्यम् ॥ ८॥

हे दामोदर! आपके उदर को बाँधनेवाली महान रज्जू (रस्सी) को प्रणाम है। निखिल ब्रह्मतेज के आश्रय और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के आधारस्वरूप आपके उदर को नमस्कार है। आपकी प्रियतमा श्रीराधारानी के चरणों में मेरा बारम्बार प्रणाम है और हे अनंत लीलाविलास करने वाले भगवन! मैं आपको भी सैकड़ो प्रणाम अर्पित करता हूँ।

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